May 1, 2024

वात रोगो ( Rheumatism) की बायोकेमिक ( Homeopathic) दवाएं

rheumatism homeopathic treatment

वात रोग (Rheumatism) के प्रकार और उनके होम्योपैथिक उपचार

दोस्तों , वात रोग से अभिप्राय उन सभी प्रकार के रोगों से है जिसके कारण शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द होता है । ये कई प्रकार के होते है ।
1. कमर दर्द (Lumbago)
2. गठिया (Gout)
3. जोड़ो की सूजन (Arthritis)
4. साइटिका (Sciatica)
5. लकवा, पक्षाघात(Paralysis)
6. तांडव रोग (chorea)
7.सुन्न पड़ना (Numbness)

Rheumatism homeopathic medicine
Rheumatism homeopathic medicine

1. कमर दर्द (Lumbago) :-

दोस्तो, कमर दर्द में calc phos 3x, calc flour 3x , Nat Mur 3x , Kali Phos 3x , Mag Phos 3x , Nat Phos 3x , Ferrum Phos 12x , और silicea 12x इस सभी बायोकेमिक दवाओं को मिलाकर देने से कमरदर्द में निश्चित ही आराम मिलता है ।

अगर किसी कारण से लाभ मिलता प्रतीत ना हो तो इस नुस्खे में
में काली म्यूर 3x और मिला दें ।

अगर दर्दग्रस्त स्थान लाल हो तो फैरम फॉस 12x का ही सेवन पर्याप्त होता है ।

2. गठिया (Gout) :-

अधिक वसायुक्त पदार्थ खाने, फल सब्जी कम खाने, शारीरिक परिश्रम कम करने आदि कारणों से शरीर में यूरिक एसिड नामक पदार्थ बनने लगता है जो शरीर के जोड़ों में जमा हो जाता है । इससे ये जोड़ अपने कार्य में सक्षम नहीं रहते जिससे जोड़ों में दर्द होने लगता है । इससे रोगी को चलने-फिरने में कष्ट होता है और वह शारीरिक कार्य नहीं कर पाता ।

यह रोग प्रायः प्रौढ़ावस्था में हुआ करता है । इस बीमारी में .काली सल्फ 3x, नैट्रम सल्फ 3x, फैरम फॉस 6x और मैग्नीशिया फॉस 6x-इन सभी को मिलाकर देने से लाभ होता है । -लाभ न हो तो फैरम फॉस और साइलीशिया- 12x में तथा शेष 10 दवायें 3x में इन सभी को मिलाकर देने से निश्चित ही लाभ होता है ।

विशेष- सरसों के तेल 200 ग्राम में लहसुन 2 नग की कलियाँ डाल दें। फिर इस तेल को आग पर रखें । जब कलियाँ जल जायें तो आग से उतारकर ठण्डा होने दें और फिर छानकर रख लें । इस तेल को दर्दग्रस्त जोड़ों पर लगाने से आराम होता है । साथ ही सुबह-शाम भोजन से पूर्व लहसुन की दो-दो कली चबानी चाहिये ।

3. जोड़ों की सूजन (Arthritis) :-

ठण्ड लगने, पौष्टिक तत्वों की कमी और अत्यधिक भोग-विलास के कारण जोड़ों में सूजन आ जाती है और उनमें दर्द होने लगता है । कभी-कभी ज्वर भी आ जाता है । यह रोग गठिया से मिलता-जुलता होता है ।

इसमें -काली म्यूर, नैट्रम सल्फ, नैट्रम म्यूर, नैट्रम फॉस, काली सल्फ, काली फॉस, मैग्नीशिया फॉस- सभी 3x में तथा फैरम फॉस व साइलीशिया-दोनों 12x में-इन सभी को मिलाकर देने से निश्चय ही लाभ होता है ।

अगर ऋतु बदलते समय ठण्डी या गर्म हवा लगने से रोग बढ़ जाये तो कल्केरिया फॉस 12x देना ही पर्याप्त है । -अगर रोग पुराना पड़ गया हो और वर्षा में दर्द बढ़ जाये तो नैट्रम सल्फ 3x देना ही पर्याप्त है ।

4. साईटिका (Sciatica) :-

इसमें पीठ के निचले हिस्से से लेकर घुटनों के पिछले हिस्से तक और कभी-कभी एड़ी तक दर्द होता है अर्थात् इतने हिस्सों में दर्द एक लाइन के रूप में होता है । यह दर्द सदैव होता ही रहता है

और हिलने-डुलने व ठण्ड लगने के कारण बढ़ जाता है । इस रोग के होने के कारणों में चोट लगना, ठण्ड लगना, अधिक शारीरिक श्रम, पौष्टिक तत्वों की कमी, मोटापा आदि प्रमुख है । यह रोग भी प्रायः प्रौढ़ावस्था में ही होता है ।

इस रोग को ठीक करने के लिए -कल्केरिया सल्फ 3x, काली फॉस 3x, मैग्नीशिया फॉस 3x, नैट्रम म्यूर 3x, नैट्रम फॉस 3x, नैट्रम सल्फ 3x, कल्केरिया फॉस 12x, फैरम फॉस 12 और साइलीशिया 12x – इन सबको मिलाकर देने लाभ होता है। विशेष रोगी को कब्ज न रहने दें । नीबू का अधिक सेवन करें। रोगी ठण्ड से बचकर रहें ।

दर्दग्रस्त स्थान पर सरसों के तेल की मालिश लाभप्रद है।

5. लकवा, पक्षाघात (Paralysis) :-

यह रोग ठण्ड लगने, पानी में अधिक काम करते रहने, मोटापा, रक्त में चीनी की अधिकता, शारीरिक श्रम का अभाव, पौष्टिक तत्वों की कमी आदि कारणों से हो जाता है। इस रोग में शरीर का कोई अंग एकदम क्रिया-शक्ति से शून्य हो जाता है अर्थात् एक प्रकार से सुन्न हो जाता है । उस अंग में कार्य करने की शक्ति नहीं रहती । कभी-कभी यह रोग आधे शरीर जैसे-दाँये या बॉये भाग पर एक साथ होता है । कभी-कभी पूरे शरीर का भी हो सकता है ।

इसमें -काली फॉस 30x, फैरम फॉस 12x, कल्केरिया फॉस 12x, कल्केरिया सल्फ 12x, साइलीशिया 12x, नैट्रम म्यूर 30x , नैट्रम फॉस 30x, मैग्नीशिया फॉस 3x – इन सबको मिलाकर देने से निश्चित ही लाभ होता है ।

रोगी को कास्टिकम 200 की एक-एक खुराक प्रत्येक पन्द्रह-पन्द्रह दिन के अन्तर से दें जब चार खुराक हो जायें तो उसके बाद रोगी को काली फॉस 30x प्रतिदिन 4 बार देना प्रारम्भ करें । इससे लाभ होने लगेगा अगर लाभ न हो तो काली फॉस 200x प्रतिदिन एक बार देना आरम्भ कर दे । इस पूरी प्रक्रिया से बहुत लाभ होता देखा गया है ।

विशेष- रोगी के शरीर की मालिश करनी चाहिये और उसे ठण्ड से बचाना चाहिये । रोगी को कब्ज और भोग-विलास से बचना चाहिये ।

6. ताण्डव (Chorea) –

यह एक स्नायविक रोग है जिसमें शरीर के कुछ अंगों जैसे-चेहरे आदि पर एक प्रकार की अनैच्छिक थिरकन सी होने लगती है जिस पर नियन्त्रण करना व्यक्ति के अधिकार में नहीं होता । यह रोग मुख्यतः ठण्ड, चोट, पुराना बुखार आदि कारणों से स्नायु के विकृत हो जाने के कारण होता है ।

इस रोग में मैग्नीशिया फॉस, नैट्रम म्यूर, नैट्रम फॉस- सभी 3x में तथा कल्केरिया फास, सिलिसिया दोनो 12x में मिलाकर देना लाभदायक होता है ।

7. सुन्न पढ़ना (Numbness) :-

जब शरीर का कोई अंग सुन्न पड़ जाता है तो काली फॉस 6x औऱ कैल्केरिया फोस 6x इन दोनों दवाओं को मिलाकर देने से निश्चित ही लाभ मिलता है

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