शक्ति(Potency)– मूल अर्क से 30,200 1M तक
निर्माण– यह टिंक्चर मधुमक्खी से तैयार होता है ।
एपिस मेलिफिका(Apis Mellifica) के मुख्य लक्षण
एपिस मेलिफिका के मुख्य प्रयोग–
इस औषध का प्रयोग क्षेत्र शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग एवं स्नायुमण्डल हैं। इन कष्टों में इसका प्रयोग गुणकारी है
पीव उत्पन्न करने वाले बड़े फोड़े, मूत्र में एल्यूमिन मिला रहना, पेशाब की बीमारी, आमवात, योनि के बाहरी भाग में सूजन, चेचक के टीके का दुष्प्रभाव और आँखों के रोग- सूजन आदि में
एपिस मेलिफिका के सिर से संबंधित लक्षण :-
दिमाग में बहुत अधिक थकान का आभास होना छींकों के साथ सिर में चक्कर आना और आँख बन्द करने पर या लेटने पर चक्करों का बढ़ जाना । माथे में कोंचने जैसा दर्द अचानक ही होने लग जाये । माथे को तकिया में धँसाना और चीखना-चिल्लाना ।
एपिस मेलिफिका के कान से संबंधित लक्षण :-
कान का बाहरी हिस्सा लाल और शोथयुक्त होना, डंक मारने की तरह का दर्द, पानी जैसे पीव का स्राव होना ।
एपिस मेलिफिका 30 के आँख से संबंधित लक्षण :-
आँखों की निचली पलकें थैली की भाँति फूल जाना, जलन, डंक मारने की तरह दर्द होना तथा उनसे पानी गिरना ।
एपिस मेलिफिका 200 के नाक से संबंधित लक्षण :-
नाक के सिरे का ठंडा होना, नाक पर सूजन, लाली और डंक मारने की तरह का तीव्र दर्द ।
एपिस मेलिफिका के मुह से संबंधित लक्षण :
सूजी हुई, दर्दयुक्त जीभ, उसका एकदम लाल पड़ना और छाले। मुँह और गले में जलन, जीभ जली हुई मालूम पड़े ऑठ फूले हुए विशेषकर निचला ओंठ । जीभ का कैंसर रोग ।
एपिस मेलिफिका के चेहरे से संबंधित लक्षण :
चेहरा फूला हुआ, मोम की भाँति पीला तथा जलनयुक्त होना। उसमें डंक लगने के समान दर्द रहे | शोथ, दर्द आदि दाहिनी तरफ से बाँयी तरफ बढ़ते
एपिस मेल के गले से संबंधित लक्षण :
काग या घाँटी में सूजन या उसका बढ़ जाना । गले में कोंचने व डंक मारने के समान दर्द ।
Apis mel 30 के पेट से संबंधित लक्षण :
रोगी जो कुछ खाये उसकी उल्टी कर दे प्यास का न लगना। पेट में खोंचा मारने के समान दर्द । दूध पीने की बलवती इच्छा । पेट में जल-संचय, आँतों की झिल्ली में सूजन तथा दाहिनी ओर यकृत में सूजन या शोथ होने पर ।
एपिस मेलिफिका (Apis 30) के छाती से संबंधित लक्षण :
श्वासकष्ट, श्वासनली में शोथ, दम घुटना, सूखी खाँसी और आवाज फटी-फटी हो जाना ।
एपिस मेलिफिका के अन्य महत्वपूर्ण लक्षण :
मूत्र – पेशाब करते समय जलन, बूँद-बूँद कर पेशाब होना । मूत्र का रंग गहरा और मात्रा थोड़ी होती है। आखिरी बूँद में डंक मारने जैसी पीड़ा और तीव्र जलन होती है
मल- हिलने-डुलने पर गुदा से मल निकल जाना । गुदा-मार्ग खुला होने की अनुभूति । दर्द भरी चुभन वाला बवासीर । बच्चों के हैजा रोग में पानी जैसा पतला पाखाना होना । बिना मल निकले पेशाव नहीं निकलता हो ।
कब्ज गहरा, काँखने पर ऐसा प्रतीत हो जैसे शरीर का अंग टूटकर अलग हो जायेगा ।
अंग-प्रत्यंग– जोड़ों में दर्द, घुटनों में सूजन, डंक मारने के समान दर्द। पीठ तथा कन्धों में वायु का दर्द । शरीर में कहीं भी थैली जैसी लटक जाने वाली शोध और डंक मारने जैसी पीड़ा होना ।
स्त्री- योनि के किनारों की सूजन, उसमें डंक मारने जैसी पीड़ा हो, ठंडे पानी से आराम मिले । दाहिने डिम्बाशय का प्रदाह मासिक स्राव कम हो या रुक जाये। मस्तिष्क और सिर के वेदनायुक्त लक्षणों के साथ युवतियों का मासिकधर्म हो ।
पुरुष रोग– दाहिनी ओर के अण्डकोष का फूलना और उसमें डंक मारने जैसा दर्द होना । उपदंश रोग में चुभन का दर्द । वाँयी तरफ की कौड़ी फूल जाती हो ।
ज्वर- बुखार का तीसरे पहर 3 से 4 बजे तक बढ़ना । बुखार में दम अटकने का भाव । पसीने के समय तन्द्राभाव, ज्वर में नींद आ जाना एवं पसीना होने के बाद शरीर में आमवात (जुलपुत्ती) निकलना, पर्यायक्रम से एक बार शरीर का पसीने से भीग जाना और फिर खुश्क हो जाना । जाड़ा लगने के समय, पसीना आते समय और उत्तापावस्था में भी प्यास नहीं लगती। निद्रा- बहुत अधिक औघाई आना । सोने में झंझट तथा मेहनत करने का स्वप्न देखना । यकायक चिहुँक उठना और जोर से चीत्कार मारना तथा इसके साथ ही नींद का टूट जाना । मन उदास व खिन्न रहना, मन में लापरवाही का भाव, चेतनाहीनता, चक्कर आ जाना, चिहुँकना और जोर-जोर से चिल्ला उठना; बकवास करना तथा चुप हो जाना, मृत्यु-भय । ठीक ढंग से सोच न पाना, क्रोध, भय और ईर्ष्या। बच्चों का मस्तिष्कावरक झिल्ली-प्रदाह (मेनिन्जाइटिस) की दशा में रह-रहकर चीत्कार मारना । पढ़ने-लिखने में मन न लगना
लक्षणों में कमी-
शुद्ध ठण्डी हवा में भ्रमण करने, ठण्डे जल से स्नान करने या किसी भी प्रकार से ठण्डे पानी का प्रयोग करने से । लक्षणों में वृद्धि गर्मी से व दिन के तीसरे पहर लगभग 5 बजे। स्वरभंग, ऐंठन का दर्द, अतिसार आदि में प्रातःकाल । सिर दर्द या अन्य दर्द व नेत्र व सीने के कष्ट में रात में ।
Apis mel के बाद की औषधियाँ-
ग्रेफाइटिस, आर्निका, आयोड, पल्स, लाइको, सल्फ, स्ट्रेमोनियम, नैट्रम म्यूर ।
क्रियानाशक औषधियाँ– कैन्थरिस, इपिकाक, लीडम पाल, प्लैण्टेगो, एसिड कार्बोल, लैक्टि एसि, तैल या इसमें तली वस्तुएँ, नमक, मीठा, प्याज आदि ।
ज्ञातव्य– यह औषध विधवा महिलाओं, पित्त-प्रधान स्नायविक धातु (नर्वस) एवं कण्ठमाला से पीड़ित धातु वाले (स्क्रॉफुलस) रोगियों में अधिक लाभप्रद रहती है ।
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